ख़िज़ाँ का भेस बना कर बहार ने मारा
मुझे दो-रंगी-ए-लैल-ओ-नहार ने मारा
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(741) Peoples Rate This
दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया
हाँ दीद का इक़रार अगर हो तो अभी हो
'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी
वो क्या लिखता जिसे इंकार करते भी हिजाब आया
हुस्न से शरह हुई इश्क़ के अफ़्साने की
भोली बातों पे तेरी दिल को यक़ीं
आँख से दिल में आने वाला
मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है
है मोहब्बत ऐसी बंधी गिरह जो न एक हाथ से खुल सके
हर साँस है इक नग़्मा हर नग़्मा है मस्ताना
न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा
रस उन आँखों का है कहने को ज़रा सा पानी