कह के ये और कुछ कहा न गया
कि मुझे आप से शिकायत है
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'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी
ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
जितना था सरगर्म-ए-कार उतना ही दिल नाकाम था
किस काम की ऐसी सच्चाई जो तोड़ दे उम्मीदें दिल की
यही इक निबाह की शक्ल है वो जफ़ा करें मैं वफ़ा करूँ
किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा
किसी गुमान-ओ-यक़ीं की हद में वो शोख़-ए-पर्दा-नशीं नहीं है
आँख से दिल में आने वाला
नहीं वो अगली सी रौनक़ दयार-ए-हस्ती की
हाँ दीद का इक़रार अगर हो तो अभी हो
वहशत हम अपनी ब'अद-ए-फ़ना छोड़ जाएँ
नाम मंसूर का क़िस्मत ने उछाला वर्ना