जवाब देने के बदले वो शक्ल देखते हैं
ये क्या हुआ मिरे चेहरे को अर्ज़-ए-हाल के बा'द
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तू ने ऐ इंक़लाब क्या ख़ल्क़ किया
दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफ़ाँ की
वाए ग़ुर्बत कि हुए जिस के लिए ख़ाना-ख़राब
फिर चाहे तो न आना ओ आन-बान वाले
आँख से दिल में आने वाला
तक़दीर पे शाकिर रह कर भी ये कौन कहे तदबीर न कर
अयाँ है बे-रुख़ी चितवन से और ग़ुस्सा निगाहों से
मिरे जोश-ए-ग़म की है अजब कहानी
किसी गुमान-ओ-यक़ीं की हद में वो शोख़-ए-पर्दा-नशीं नहीं है
'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी
हाँ दीद का इक़रार अगर हो तो अभी हो
देखें महशर में उन से क्या ठहरे