हल्का था नदामत से सरमाया इबादत का
इक क़तरे में बह निकले तस्बीह के सौ दाने
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(878) Peoples Rate This
हाथ से किस ने साग़र पटका मौसम की बे-कैफ़ी पर
वअ'दा सच्चा है कि झूटा मुझे मालूम न था
दिल मुकद्दर है आईना-रू का
जिस क़दर नफ़रत बढ़ाई उतनी ही क़ुर्बत बढ़ी
हद से टकराती है जो शय वो पलटती है ज़रूर
सीने में ज़ब्त-ए-ग़म से छाला उभर रहा है
हुस्न ओ इश्क़ की लाग में अक्सर छेड़ उधर से होती है
क़ुर्बत बढ़ा बढ़ा कर बे-ख़ुद बना रहे हैं
दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफ़ाँ की
जिन रातों में नींद उड़ जाती है क्या क़हर की रातें होती हैं
धारे से कभी कश्ती न हटी और सीधी घाट पर आ पहुँची
नज़र बचा के जो आँसू किए थे मैं ने पाक