दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है
उलझे दामन को छुड़ाते नहीं झटका दे कर
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
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कुछ कहते कहते इशारों में शर्मा के किसी का रह जाना
जिन रातों में नींद उड़ जाती है क्या क़हर की रातें होती हैं
हद से टकराती है जो शय वो पलटती है ज़रूर
फिर चाहे तो न आना ओ आन-बान वाले
मख़रब-ए-कार हुई जोश में ख़ुद उजलत-ए-कार
ख़मोश जलने का दिल के कोई गवाह नहीं
अपनी अपनी गर्दिश-ए-रफ़्तार पूरी कर तो लें
ख़िज़ाँ का भेस बना कर बहार ने मारा
दोस्त ने दिल को तोड़ के नक़्श-ए-वफ़ा मिटा दिया
तुम्हें क्या काम नालों से तुम्हें क्या काम आहों से
मीर-ए-महफ़िल न हुए गर्मी-ए-महफ़िल तो हुए
भोली बातों पे तेरी दिल को यक़ीं