वो क्या लिखता जिसे इंकार करते भी हिजाब आया
वो क्या लिखता जिसे इंकार करते भी हिजाब आया
जवाब-ए-ख़त नहीं आया तो ये समझो जवाब आया
क़रीब-ए-सुब्ह ये कह कर अजल ने आँख झपका दी
अरे ओ हिज्र के मारे तुझे अब तक न ख़्वाब आया
दिल इस आवाज़ के सदक़े ये मुश्किल में कहा किस ने
न घबराना न घबराना मैं आया और शिताब आया
कोई क़िताल-सूरत देख ली मरने लगे उस पर
ये मौत इक ख़ुशनुमा पर्दे में आई या शबाब आया
पुराने अहद टूटे हो गए पैमाँ नए क़ाएम
बना दी उस ने दुनिया दूसरी जो इंक़लाब आया
गुज़रगाह-ए-मोहब्बत बन गई इक मुस्तक़िल बस्ती
लगा कर आग आया घर को जो ख़ाना-ख़राब आया
मुअम्मा बन गया राज़-ए-मोहब्बत 'आरज़ू' यूँही
वो मुझ से पूछते झिजके मुझे कहते हिजाब आया
(764) Peoples Rate This