Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_12ef29e7538931c5c44b39fc50c1b8c6, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें - आरज़ू लखनवी कविता - Darsaal

ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें

ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें

वो तो हैं राजा हम बनें प्रजा और झुक झुक के सलाम करें

खुल पड़ने में नाकामी है गुम हो कर कुछ काम करें

देस पुराना भेस बना हो नाम बदल कर नाम करें

दोनों जहाँ में ख़िदमत तेरी ख़ादिम को मख़दूम बनाए

परियाँ जिस के पाँव दबाएँ हूरें जिस का काम करें

हिज्र का सन्नाटा खो देगी गहमा-गहमी नालों की

रात अकेले क्यूँकर काटें सब की नींद हराम करें

मेरे बुरा कहलाने से तो अच्छे बन नहीं सकते आप

बैठे-बैठाए ये क्या सूझी आओ उसे बदनाम करें

दिल की ख़ुशी पाबंद न निकली रस्म-ओ-रिवाज-ए-आलम की

फूलों पर तो चैन न आए काँटों पर आराम करें

ऐसे ही काम किया करती है गर्दिश उन की आँखों की

शाम को चाहे सुब्ह बना दें सुब्ह को चाहे शाम करें

ला-महदूद फ़ज़ा में फिर कर हद कोई क्या डालेगा

पुख़्ता-कार-ए-जुनूँ हम भी हैं क्यूँ ये ख़याल-ए-ख़ाम करें

नाम-ए-वफ़ा से चिढ़ उन को और 'आरज़ू' इस ख़ू से मजबूर

क्यूँकर आख़िर दिल बहलाएँ किस वहशी को राम करें

(750) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Khaali BaiThe Kyun Din KaTen Aao Re Ji Ek Kaam Karen In Hindi By Famous Poet Arzoo Lakhnavi. Khaali BaiThe Kyun Din KaTen Aao Re Ji Ek Kaam Karen is written by Arzoo Lakhnavi. Complete Poem Khaali BaiThe Kyun Din KaTen Aao Re Ji Ek Kaam Karen in Hindi by Arzoo Lakhnavi. Download free Khaali BaiThe Kyun Din KaTen Aao Re Ji Ek Kaam Karen Poem for Youth in PDF. Khaali BaiThe Kyun Din KaTen Aao Re Ji Ek Kaam Karen is a Poem on Inspiration for young students. Share Khaali BaiThe Kyun Din KaTen Aao Re Ji Ek Kaam Karen with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.