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दिल में याद-ए-बुत-ए-बे-पीर लिए बैठा हूँ - आरज़ू लखनवी कविता - Darsaal

दिल में याद-ए-बुत-ए-बे-पीर लिए बैठा हूँ

दिल में याद-ए-बुत-ए-बे-पीर लिए बैठा हूँ

यानी इक ज़ुल्म की तस्वीर लिए बैठा हूँ

आह में दर्द की तासीर लिए बैठा हूँ

दिल में इक ख़ून भरा तीर लिए बैठा हूँ

इक ज़रा सी ख़लिश-ए-दर्द-ए-जिगर पर ये घमंड

जैसे कुल इश्क़ की जागीर लिए बैठा हूँ

है मुझे साज़-ए-तरब सोख़्ता-सामानी-ए-दिल

पर्दा-ए-ख़ाक में इक्सीर लिए बैठा हूँ

चूर शीशे पे नज़र पड़ते ही दिल याद आया

मिटने वाले तिरी तस्वीर लिए बैठा हूँ

क़ैद को तोड़ के समझा कि सहारा तोड़ा

हाथ में पाँव की ज़ंजीर लिए बैठा हूँ

'आरज़ू' हो चुकी सौ मरतबा दुनिया बेदार

और मैं सोई हुई तक़दीर लिए बैठा हूँ

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