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दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया - आरज़ू लखनवी कविता - Darsaal

दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया

दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया

आसान काम आप ने मुश्किल बना दिया

हर साँस एक शो'ला है हर शो'ला एक बर्क़

क्या तू ने मुझ को ऐ तपिश-ए-दिल बना दिया

इस हुस्न-ए-ज़न पे हम-सफ़रों के हूँ पा-ब-गिल

मुझ बे-ख़बर को रहबर-ए-मंज़िल बना दिया

अंधा है शौक़ फिर नज़र इम्कान पर हो क्यूँ

काम अपना दिल ने आप ही मुश्किल बना दिया

दौड़ा लहू रगों में बंधी ज़िंदगी की आस

ये भी बुरा नहीं है जो बिस्मिल बना दिया

ग़र्क़ ओ उबूर दोनों का हासिल है ख़त्म-ए-कार

मजबूरियों ने मौज को साहिल बना दिया

उस शान-ए-आजिज़ी के फ़िदा जिस ने 'आरज़ू'

हर नाज़ हर ग़ुरूर के क़ाबिल बना दिया

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