Ghazals of Arzoo Lakhnavi
नाम | आरज़ू लखनवी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Arzoo Lakhnavi |
जन्म की तारीख | 1873 |
मौत की तिथि | 1951 |
जन्म स्थान | Karachi |
यूँ दूर दूर दिल से हो हो के दिल-नशीं भी
ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से
यही इक निबाह की शक्ल है वो जफ़ा करें मैं वफ़ा करूँ
वो सर-ए-बाम कब नहीं आता
वो क्या लिखता जिसे इंकार करते भी हिजाब आया
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
वअ'दा सच्चा है कि झूटा मुझे मालूम न था
उस की तो एक दिल-लगी अपना बना के छोड़ दे
तुम्हें क्या काम नालों से तुम्हें क्या काम आहों से
तस्कीन-ए-दिल का ये क्या क़रीना
तक़दीर पे शाकिर रह कर भी ये कौन कहे तदबीर न कर
तलाश-ए-रंग में आवारा मिस्ल-ए-बू हूँ मैं
तड़पते दिल को न ले इज़्तिराब लेता जा
रस उन आँखों का है कहने को ज़रा सा पानी
क़ुर्बत बढ़ा बढ़ा कर बे-ख़ुद बना रहे हैं
पियूँ ही क्यूँ जो बुरा जानूँ और छुपा के पियूँ
फिर चाहे तो न आना ओ आन-बान वाले
फेर जो पड़ना था क़िस्मत में वो हस्ब-ए-मामूल पड़ा
नज़र उस चश्म पे है जाम लिए बैठा हूँ
नाले मजबूरों के ख़ाली नहीं जाने वाले
न कोई जल्वती न कोई ख़ल्वती न कोई ख़ास था न कोई आम था
न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा
मुझ को दिल क़िस्मत ने उस को हुस्न-ए-ग़ारत-गर दिया
मीर-ए-महफ़िल न हुए गर्मी-ए-महफ़िल तो हुए
मिरी निगाह कहाँ दीद-ए-हुस्न-ए-यार कहाँ
मिरे जोश-ए-ग़म की है अजब कहानी
मासूम नज़र का भोला-पन ललचा के लुभाना क्या जाने
क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता
कुछ मैं ने कही है न अभी उस ने सुनी है
कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना