बहुत अज़ीज़ न क्यूँ हो कि दर्द है तेरा
ये दर्द बढ़ के रहा इज़्तिराब हो के रहा
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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Wasi Shah
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
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अजीब चीज़ है ये शौक़-ए-आरज़ू-मंदी
हमें तो अपनी तबाही की दाद भी न मिली
कारवाँ तीरा-शब में चलते हैं
आग़ाज़-ए-आशिक़ी का अल्लाह रे ज़माना
रक़्स-ए-आशुफ़्ता-सरी की कोई तदबीर सही
निगाह-ए-शौक़ से कब तक मुक़ाबला करते
तमाम हुस्न-ए-जहाँ का जवाब हो के रहा
दर्द के साँचे में ढल कर रह गई
मता-ए-शौक़ तो है दर्द-ए-रोज़गार तो है
मौक़ूफ़ फ़स्ल-ए-गुल पे नहीं रौनक़-ए-चमन
फ़लसफ़ी किस लिए इल्ज़ाम-ए-फ़ना देता है
उफ़ुक़ के ख़ूनीं धुँदलकों का सुब्ह नाम नहीं