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क़ल्ब-ओ-नज़र का सुकूँ और कहाँ दोस्तो - अरशद सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

क़ल्ब-ओ-नज़र का सुकूँ और कहाँ दोस्तो

क़ल्ब-ओ-नज़र का सुकूँ और कहाँ दोस्तो

कू-ए-बुताँ दोस्तो कू-ए-बुताँ दोस्तो

मेरा ही दिल है कि मैं फिरता हूँ यूँ ख़ंदा-ज़न

कम नहीं परदेस में दिल का ज़ियाँ दोस्तो

जिन में ख़ुलूस-ए-वफ़ा और न शुऊ'र-ए-सितम

मुझ को बिठाया है ये ला के कहाँ दोस्तो

चार घड़ी रात है आओ कि हँस बोल लें

जाने सहर तक हो फिर कौन कहाँ दोस्तो

रब्त-ए-मरासिम के बा'द तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ ग़लत

आग बुझाने से भी होगा धुआँ दोस्तो

लाख छुपो साया-ए-गेसू-ए-शब-रंग में

मिल नहीं सकती मगर ग़म से अमाँ दोस्तो

शाइर-ए-'अरशद' हूँ मैं शाएर-ए-फ़ितरत हूँ मैं

मिट नहीं सकता मिरा नाम-ओ-निशाँ दोस्तो

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