सभी ताबीर उस की लिख रहे हैं
किसी ने भी उसे देखा नहीं है
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Allama Iqbal
Jaun Eliya
Gulzar
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एक सूरत तिरी बनाने में
तिरे ख़याल से फिर आँख मेरी पुर-नम है
मोहब्बत सिर्फ़ इक जज़्बा नहीं है
जब मैं उस आदमी से दूर हुआ
ख़ला का मसअला ही मुख़्तलिफ़ है
अजब कशिश है तिरे होने या न होने में
किसी सूरत अगर इज़हार की सूरत निकल आए
सुरूर-ए-इश्क़ ने उल्फ़त से बाँध रक्खा है
फैलती जा रही है ये दुनिया
किस के सवाल पर ये दिल रोता है सारी सारी रात