ख़ाक-ए-सहरा तो बहुत दूर है ऐ वहशत-ए-दिल
ख़ाक-ए-सहरा तो बहुत दूर है ऐ वहशत-ए-दिल
क्यूँ न ज़ेहनों पे जमी गर्द उड़ा दी जाए
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ख़ाक-ए-सहरा तो बहुत दूर है ऐ वहशत-ए-दिल
क्यूँ न ज़ेहनों पे जमी गर्द उड़ा दी जाए
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