ऐ दिल तिरे तुफ़ैल जो मुझ पर सितम हुए
ऐ दिल तिरे तुफ़ैल जो मुझ पर सितम हुए
पूछे जो मुझ से कोई तो कह दूँ कि कम हुए
मेरे चराग़-ए-ज़ेहन को वो गुल न कर सके
हालाँकि सब अँधेरे मिरे दिल में ज़म हुए
हर्फ़-ए-ग़ज़ब से भी हमें महरूम कर दिया
यूँ बे-नियाज़ हम से हमारे सनम हुए
उन की ज़मीन-ए-दिल का तो क़िस्सा ही और है
वर्ना उन आँसुओं से तो सहरा भी नम हुए
अहबाब ने तो रास्ते ढूँडे थे मुख़्तलिफ़
लेकिन सब आ के मेरी ही राहों में ज़म हुए
रब्त-ए-दिली से ख़ल्क़ को अब वास्ता कहाँ
अब तो हमा-शुमा भी असीर-ए-मनम हुए
'अरशद' फ़सील-ए-ज़ेहन में बढ़ने लगा जो हब्स
हम शहर-ए-दिल में जा के ज़रा ताज़ा-दम हुए
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