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ऐ दिल तिरे तुफ़ैल जो मुझ पर सितम हुए - अरशद कमाल कविता - Darsaal

ऐ दिल तिरे तुफ़ैल जो मुझ पर सितम हुए

ऐ दिल तिरे तुफ़ैल जो मुझ पर सितम हुए

पूछे जो मुझ से कोई तो कह दूँ कि कम हुए

मेरे चराग़-ए-ज़ेहन को वो गुल न कर सके

हालाँकि सब अँधेरे मिरे दिल में ज़म हुए

हर्फ़-ए-ग़ज़ब से भी हमें महरूम कर दिया

यूँ बे-नियाज़ हम से हमारे सनम हुए

उन की ज़मीन-ए-दिल का तो क़िस्सा ही और है

वर्ना उन आँसुओं से तो सहरा भी नम हुए

अहबाब ने तो रास्ते ढूँडे थे मुख़्तलिफ़

लेकिन सब आ के मेरी ही राहों में ज़म हुए

रब्त-ए-दिली से ख़ल्क़ को अब वास्ता कहाँ

अब तो हमा-शुमा भी असीर-ए-मनम हुए

'अरशद' फ़सील-ए-ज़ेहन में बढ़ने लगा जो हब्स

हम शहर-ए-दिल में जा के ज़रा ताज़ा-दम हुए

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