सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी
सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी
अजब मिट्टी के घुलने का मज़ा बारिश में रहता है
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सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी
अजब मिट्टी के घुलने का मज़ा बारिश में रहता है
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