Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_3c7860809a33645a76552aac23b101b2, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ये ख़ाकी पैरहन इक इस्म की बंदिश में रहता है - अरशद जमाल 'सारिम' कविता - Darsaal

ये ख़ाकी पैरहन इक इस्म की बंदिश में रहता है

ये ख़ाकी पैरहन इक इस्म की बंदिश में रहता है

ज़माना हर घड़ी वर्ना नई साज़िश में रहता है

इसी बाइ'स मैं अपना निस्फ़ रखता हूँ अँधेरे में

मिरे अतराफ़ भी सूरज कोई गर्दिश में रहता है

मैं इक परकार सा सय्यार भी हूँ और साबित भी

जहाँ सारा मिरे क़दमों की पैमाइश में रहता है

मिरी आँखों में अब है मौजज़न बस रेत वहशत की

समुंदर अब कहाँ पलकों की हर जुम्बिश में रहता है

सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी

अजब मिट्टी के घुलने का मज़ा बारिश में रहता है

तसल्लुत है किसी का जब से अपनी ज़ात पर 'सारिम'

हमारा दिल बहुत आराम-ओ-आसाइश में रहता है

(873) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ye KHaki Pairahan Ek Ism Ki Bandish Mein Rahta Hai In Hindi By Famous Poet Arshad Jamal 'Sarim'. Ye KHaki Pairahan Ek Ism Ki Bandish Mein Rahta Hai is written by Arshad Jamal 'Sarim'. Complete Poem Ye KHaki Pairahan Ek Ism Ki Bandish Mein Rahta Hai in Hindi by Arshad Jamal 'Sarim'. Download free Ye KHaki Pairahan Ek Ism Ki Bandish Mein Rahta Hai Poem for Youth in PDF. Ye KHaki Pairahan Ek Ism Ki Bandish Mein Rahta Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Ye KHaki Pairahan Ek Ism Ki Bandish Mein Rahta Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.