Sharab Poetry of Arshad Ali Khan Qalaq
नाम | अरशद अली ख़ान क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Arshad Ali Khan Qalaq |
मय जो दी ग़ैर को साक़ी ने कराहत देखो
हुआ मैं रिंद-मशरब ख़ाक मर कर इस तमन्ना में
हिम्मत का ज़ाहिदों की सरासर क़ुसूर था
यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा
तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है
रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का
परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है
परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का
नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से
न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में
लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के
लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में
जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा
चश्मक-ज़नी में करती नहीं यार का लिहाज़
बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को
बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को
बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई