Love Poetry of Arshad Ali Khan Qalaq (page 2)
नाम | अरशद अली ख़ान क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Arshad Ali Khan Qalaq |
परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का
नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से
न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में
न कल तक थे वो मुँह लगाने के क़ाबिल
मिलता है क़ैद-ए-ग़म में भी लुत्फ़-ए-फ़ज़ा-ए-बाग़
लुत्फ़-ए-बहार मुश्फ़िक़-ए-मन देखते चलो
लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा
इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली
हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो
हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया
हम तो हों दिल से दूर रहें पास और लोग
हैं तेग़-ए-नाज़-ए-यार के बिस्मिल अलग अलग
गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का
गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख
डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में
दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया
दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ
दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है
चश्मक-ज़नी में करती नहीं यार का लिहाज़
बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को
बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को
बोलेगा कौन आशिक़-ए-नादार की तरफ़
बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए
बशर के फ़ैज़-ए-सोहबत से लियाक़त आ ही जाती है
बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
आश्ना होते ही उस इश्क़ ने मारा मुझ को
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब