Love Poetry of Arshad Ali Khan Qalaq (page 1)
नाम | अरशद अली ख़ान क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Arshad Ali Khan Qalaq |
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
फिर गया आँखों में उस कान के मोती का ख़याल
मुझ से उन आँखों को वहशत है मगर मुझ को है इश्क़
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
ख़ुश-क़दों से कभी आलम न रहेगा ख़ाली
ख़रीदारी-ए-जिंस-ए-हुस्न पर रग़बत दिलाता है
काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में
हज़रत-ए-इश्क़ ने दोनों को किया ख़ाना-ख़राब
बराबर एक से मिस्रा नज़र आते हैं अबरू के
ऐ परी-ज़ाद जो तू रक़्स करे मस्ती में
ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
ये जी में आता है जल जल के हर ज़माँ नासेह
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
ये बारीक उन की कमर हो गई
यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा
यगाना उन का बेगाना है बेगाना यगाना है
वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की
वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप
था क़स्द-ए-क़त्ल-ए-ग़ैर मगर मैं तलब हुआ
तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
सोते हैं फैल फैल के सारे पलंग पर
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है
सैर करते उसे देखा है जो बाज़ारों में
साफ़ बातों से हो गया मा'लूम
रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम
रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का
पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़
परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है