Hope Poetry of Arshad Ali Khan Qalaq (page 1)
नाम | अरशद अली ख़ान क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Arshad Ali Khan Qalaq |
उन वाइ'ज़ों की ज़िद से हम अब की बहार में
सिंदूर उस की माँग में देता है यूँ बहार
हुआ मैं रिंद-मशरब ख़ाक मर कर इस तमन्ना में
बना कर तिल रुख़-ए-रौशन पर दो शोख़ी से से कहते हैं
बहार आते ही ज़ख़्म-ए-दिल हरे सब हो गए मेरे
ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं
आलम-ए-पीरी में क्या मू-ए-सियह का ए'तिबार
ये जी में आता है जल जल के हर ज़माँ नासेह
यगाना उन का बेगाना है बेगाना यगाना है
वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की
वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप
था क़स्द-ए-क़त्ल-ए-ग़ैर मगर मैं तलब हुआ
तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है
साफ़ बातों से हो गया मा'लूम
रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम
रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का
परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है
परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का
नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से
मिलता है क़ैद-ए-ग़म में भी लुत्फ़-ए-फ़ज़ा-ए-बाग़
लुत्फ़-ए-बहार मुश्फ़िक़-ए-मन देखते चलो
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा
इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली
हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया
हम तो हों दिल से दूर रहें पास और लोग
गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख
डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में