यूँ राही-ए-अ'दम हुई बा-वस्फ़-ए-उज़्र-ए-लंग
महसूस आज तक न हुए नक़्श-ए-पा-ए-शम्अ'
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दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया
बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब
सैर करते उसे देखा है जो बाज़ारों में
वो एक रात तो मुझ से अलग न सोएगा
परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
तिरे होंठों से शर्मा कर पसीने में हुआ ये तर
बहार आते ही ज़ख़्म-ए-दिल हरे सब हो गए मेरे
यूँ रूह थी अदम में मिरी बहर-ए-तन उदास
बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए
वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की
रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम