याद दिलवाइए उन को जो कभी वादा-ए-वस्ल
तो वो किस नाज़ से फ़रमाते हैं हम भूल गए
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Allama Iqbal
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Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
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बराबर एक से मिस्रा नज़र आते हैं अबरू के
लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में
दिल ख़स्ता हो तो लुत्फ़ उठे कुछ अपनी ग़ज़ल का
मैं वो मय-कश हूँ मिली है मुझ को घुट्टी में शराब
रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम
न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में
हम तो न घर में आप के दम-भर ठहरने आएँ
हुआ मैं रिंद-मशरब ख़ाक मर कर इस तमन्ना में
जमे क्या पाँव मेरे ख़ाना-ए-दिल में क़नाअ'त का
बा'द मेरे जो किया शाद किसी को तो कहा
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
यार की फ़र्त-ए-नज़ाकत का हूँ मैं शुक्र-गुज़ार