वो एक रात तो मुझ से अलग न सोएगा
हुआ जो लज़्ज़त-ए-बोस-ओ-कनार से वाक़िफ़
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यगाना उन का बेगाना है बेगाना यगाना है
पूछा सबा से उस ने पता कू-ए-यार का
दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया
दस्त-ए-जुनूँ ने फाड़ के फेंका इधर-उधर
हम तो हों दिल से दूर रहें पास और लोग
ख़त में लिक्खी है हक़ीक़त दश्त-गर्दी की अगर
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
ख़ुश-क़दों से कभी आलम न रहेगा ख़ाली
आलम-ए-पीरी में क्या मू-ए-सियह का ए'तिबार
यूँ रूह थी अदम में मिरी बहर-ए-तन उदास
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
हज़रत-ए-इश्क़ ने दोनों को किया ख़ाना-ख़राब