सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
हुआ तुम्हारे बिगड़ने से फ़ैसला दिल का
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तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
यूँ राही-ए-अ'दम हुई बा-वस्फ़-ए-उज़्र-ए-लंग
ये जी में आता है जल जल के हर ज़माँ नासेह
न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में
दस्त-ए-जुनूँ ने फाड़ के फेंका इधर-उधर
मैं वो मय-कश हूँ मिली है मुझ को घुट्टी में शराब
वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
लुत्फ़-ए-बहार मुश्फ़िक़-ए-मन देखते चलो
जब हुआ गर्म-ए-कलाम-ए-मुख़्तसर महका दिया
जमे क्या पाँव मेरे ख़ाना-ए-दिल में क़नाअ'त का
गर्दिश में साथ उन आँखों का कोई न दे सका