सिंदूर उस की माँग में देता है यूँ बहार
जैसे धनक निकलती है अब्र-ए-सियाह में
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मिसाल-ए-आइना हम जब से हैरती हैं तिरे
ख़रीदारी-ए-जिंस-ए-हुस्न पर रग़बत दिलाता है
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
फँस गया है दाम-ए-काकुल में बुतान-ए-हिन्द के
कोताह उम्र हो गई और ये न कम हुई
मैं वो मय-कश हूँ मिली है मुझ को घुट्टी में शराब
जब हुआ गर्म-ए-कलाम-ए-मुख़्तसर महका दिया
परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
कुछ ख़बर देता नहीं उस की दिल-ए-आगह मुझे
साफ़ बातों से हो गया मा'लूम
कुफ्र-ओ-इस्लाम के झगड़ों से छुड़ाया सद-शुक्र