रस्ते में उन को छेड़ के खाते हैं गालियाँ
बाज़ार की मिठाई भी होती है क्या लज़ीज़
Gulzar
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राह-ए-हक़ में खेल जाँ-बाज़ी है ओ ज़ाहिर-परस्त
डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में
क्या कोई दिल लगा के कहे शे'र ऐ 'क़लक़'
काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में
मुझ से उन आँखों को वहशत है मगर मुझ को है इश्क़
जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा
बना कर तिल रुख़-ए-रौशन पर दो शोख़ी से से कहते हैं
यार की फ़र्त-ए-नज़ाकत का हूँ मैं शुक्र-गुज़ार
करेंगे हम से वो क्यूँकर निबाह देखते हैं
ये जी में आता है जल जल के हर ज़माँ नासेह
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ