पूछा सबा से उस ने पता कू-ए-यार का
देखो ज़रा शुऊ'र हमारे ग़ुबार का
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चला है छोड़ के तन्हा किधर तसव्वुर-ए-यार
डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में
गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का
खुलने से एक जिस्म के सौ ऐब ढक गए
पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़
दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है
जब हुआ गर्म-ए-कलाम-ए-मुख़्तसर महका दिया
यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा
आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है
दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ
लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के
रुख़ तह-ए-ज़ुल्फ़ है और ज़ुल्फ़ परेशाँ सर पर