फँस गया है दाम-ए-काकुल में बुतान-ए-हिन्द के
ताइर-ए-दिल को हमारे राम-दाना चाहिए
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काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में
क्या कोई दिल लगा के कहे शे'र ऐ 'क़लक़'
तिरे होंठों से शर्मा कर पसीने में हुआ ये तर
हिम्मत का ज़ाहिदों की सरासर क़ुसूर था
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का
याद दिलवाइए उन को जो कभी वादा-ए-वस्ल
फिर मुझ से इस तरह की न कीजेगा दिल-लगी
नया मज़मून लाना काटना कोह-ओ-जबल का है
ये बारीक उन की कमर हो गई
रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का
बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को