नया मज़मून लाना काटना कोह-ओ-जबल का है
नहीं हम शेर कहते पेशा-ए-फ़र्हाद कहते हैं
Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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Jaun Eliya
Habib Jalib
Gulzar
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Javed Akhtar
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फँस गया है दाम-ए-काकुल में बुतान-ए-हिन्द के
दस्त-ए-जुनूँ ने फाड़ के फेंका इधर-उधर
आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है
दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया
वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की
कुफ्र-ओ-इस्लाम के झगड़ों से छुड़ाया सद-शुक्र
लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में
मय जो दी ग़ैर को साक़ी ने कराहत देखो
हम उन से और वो हम से दम-ए-सुल्ह थे ख़जिल
जमे क्या पाँव मेरे ख़ाना-ए-दिल में क़नाअ'त का
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
यूँ रूह थी अदम में मिरी बहर-ए-तन उदास