कोताह उम्र हो गई और ये न कम हुई
ऐ जान आ के तूल-ए-शब-ए-इंतिज़ार देख
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डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में
साफ़ बातों से हो गया मा'लूम
लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के
वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की
ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं
ऐ परी-ज़ाद जो तू रक़्स करे मस्ती में
अगर न जामा-ए-हस्ती मिरा निकल जाता
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया
तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
करो तुम मुझ से बातें और मैं बातें करूँ तुम से
पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़