करेंगे हम से वो क्यूँकर निबाह देखते हैं
हम उन की थोड़े दिनों और चाह देखते हैं
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(697) Peoples Rate This
साफ़ बातों से हो गया मा'लूम
दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है
हम तो न घर में आप के दम-भर ठहरने आएँ
बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए
अगर न जामा-ए-हस्ती मिरा निकल जाता
हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो
दिल ख़स्ता हो तो लुत्फ़ उठे कुछ अपनी ग़ज़ल का
फँस गया है दाम-ए-काकुल में बुतान-ए-हिन्द के
परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है
तिलाई रंग जानाँ का अगर मज़मून लिखूँ ख़त में
हिम्मत का ज़ाहिदों की सरासर क़ुसूर था
कोताह उम्र हो गई और ये न कम हुई