हिम्मत का ज़ाहिदों की सरासर क़ुसूर था
मय-ख़ाना ख़ानक़ाह से ऐसा न दूर था
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ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं
बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए
'क़लक़' ग़ज़लें पढ़ेंगे जा-ए-कुरआँ सब पस-ए-मुर्दन
ख़त में लिक्खी है हक़ीक़त दश्त-गर्दी की अगर
जब हुआ गर्म-ए-कलाम-ए-मुख़्तसर महका दिया
बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई
बा'द मेरे जो किया शाद किसी को तो कहा
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब
रस्ते में उन को छेड़ के खाते हैं गालियाँ
खुलने से एक जिस्म के सौ ऐब ढक गए
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख