हज़रत-ए-इश्क़ ने दोनों को किया ख़ाना-ख़राब
बरहमन बुत-कदा और शैख़ हरम भूल गए
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
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ज़मीन पाँव के नीचे से सरकी जाती है
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई
सैद ख़ाइफ़ वो हों इस सैद-गह-ए-आ'लम में
हैं तेग़-ए-नाज़-ए-यार के बिस्मिल अलग अलग
बशर के फ़ैज़-ए-सोहबत से लियाक़त आ ही जाती है
कुछ ख़बर देता नहीं उस की दिल-ए-आगह मुझे
याद दिलवाइए उन को जो कभी वादा-ए-वस्ल
डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में
पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में