गर्दिश में साथ उन आँखों का कोई न दे सका
दिन रह गया कभी तो कभी रात रह गई
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राह-ए-हक़ में खेल जाँ-बाज़ी है ओ ज़ाहिर-परस्त
दिल ख़स्ता हो तो लुत्फ़ उठे कुछ अपनी ग़ज़ल का
लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के
तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब
साफ़ बातों से हो गया मा'लूम
बशर के फ़ैज़-ए-सोहबत से लियाक़त आ ही जाती है
'क़लक़' ग़ज़लें पढ़ेंगे जा-ए-कुरआँ सब पस-ए-मुर्दन
करेंगे हम से वो क्यूँकर निबाह देखते हैं
रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का
ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं