छेड़ा अगर मिरे दिल-ए-नालाँ को आप ने
फिर भूल जाइएगा बजाना सितार का
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लुत्फ़-ए-बहार मुश्फ़िक़-ए-मन देखते चलो
बराबर एक से मिस्रा नज़र आते हैं अबरू के
ख़ुदा-हाफ़िज़ है अब ऐ ज़ाहिदो इस्लाम-ए-आशिक़ का
कुफ्र-ओ-इस्लाम के झगड़ों से छुड़ाया सद-शुक्र
'क़लक़' ग़ज़लें पढ़ेंगे जा-ए-कुरआँ सब पस-ए-मुर्दन
वो रिंद हूँ कि मुझे हथकड़ी से बैअत है
कुछ ख़बर देता नहीं उस की दिल-ए-आगह मुझे
गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का
मुझ से उन आँखों को वहशत है मगर मुझ को है इश्क़
हम उन से और वो हम से दम-ए-सुल्ह थे ख़जिल
करेंगे हम से वो क्यूँकर निबाह देखते हैं
परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का