बे-सबब ग़ुंचे चटकते नहीं गुलज़ारों में
फिर रहा है ये ढिंढोरा तिरी रानाई का
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ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में
आलम-ए-पीरी में क्या मू-ए-सियह का ए'तिबार
रस्ते में उन को छेड़ के खाते हैं गालियाँ
ख़ुश-क़दों से कभी आलम न रहेगा ख़ाली
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं
रुख़ तह-ए-ज़ुल्फ़ है और ज़ुल्फ़ परेशाँ सर पर
बा'द मेरे जो किया शाद किसी को तो कहा
ख़त में लिक्खी है हक़ीक़त दश्त-गर्दी की अगर
काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर