बहार आते ही ज़ख़्म-ए-दिल हरे सब हो गए मेरे
बहार आते ही ज़ख़्म-ए-दिल हरे सब हो गए मेरे
उधर चटका कोई ग़ुंचा इधर टूटा हर इक टाँका
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बहार आते ही ज़ख़्म-ए-दिल हरे सब हो गए मेरे
उधर चटका कोई ग़ुंचा इधर टूटा हर इक टाँका
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