बा'द मेरे जो किया शाद किसी को तो कहा
हम को इस वक़्त वो नाशाद बहुत याद आया
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तिलाई रंग जानाँ का अगर मज़मून लिखूँ ख़त में
उन वाइ'ज़ों की ज़िद से हम अब की बहार में
आश्ना होते ही उस इश्क़ ने मारा मुझ को
वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप
क्या कोई दिल लगा के कहे शे'र ऐ 'क़लक़'
उम्र तो अपनी हुई सब बुत-परस्ती में बसर
यार के नर्गिस-ए-बीमार का बीमार रहा
गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का
जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा
जब हुआ गर्म-ए-कलाम-ए-मुख़्तसर महका दिया
वो रिंद हूँ कि मुझे हथकड़ी से बैअत है
ख़रीदारी-ए-जिंस-ए-हुस्न पर रग़बत दिलाता है