ऐ परी-ज़ाद जो तू रक़्स करे मस्ती में
दाना-ए-ताक हर इक पाँव में घुंघरू हो जाए
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पिन्हाँ था ख़ुश-निगाहों की दीदार का मरज़
बशर के फ़ैज़-ए-सोहबत से लियाक़त आ ही जाती है
हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो
चला है छोड़ के तन्हा किधर तसव्वुर-ए-यार
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
सैर करते उसे देखा है जो बाज़ारों में
सैद ख़ाइफ़ वो हों इस सैद-गह-ए-आ'लम में
चश्मक-ज़नी में करती नहीं यार का लिहाज़
दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ
दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया
न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में