अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
बस इक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का
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लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
अगर न जामा-ए-हस्ती मिरा निकल जाता
दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है
दस्त-ए-जुनूँ ने फाड़ के फेंका इधर-उधर
लुत्फ़-ए-बहार मुश्फ़िक़-ए-मन देखते चलो
यूँ रूह थी अदम में मिरी बहर-ए-तन उदास
फिर गया आँखों में उस कान के मोती का ख़याल
हिम्मत का ज़ाहिदों की सरासर क़ुसूर था
गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का
वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की
रस्ते में उन को छेड़ के खाते हैं गालियाँ