Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_5c2d4a42eb8663bb66699a60d4169da5, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ये बारीक उन की कमर हो गई - अरशद अली ख़ान क़लक़ कविता - Darsaal

ये बारीक उन की कमर हो गई

ये बारीक उन की कमर हो गई

कि नज़रों में तार-ए-नज़र हो गई

पड़ा दोनों ज़ुल्फ़ों का उन की जो अक्स

नज़ाकत से दोहरी कमर हो गई

गले चढ़ने मस्ती में मस्तों के मुँह

बड़ी दुख़्तर-ए-रज़ ये निडर हो गई

वो अब काट तेग़-ए-निगह का नहीं

कुछ आँखों पर उन की नज़र हो गई

मिरा नक़्द-ए-दिल मार बैठे हसीं

ये दौलत इधर से उधर हो गई

किया उन के मुँह पे जो वस्फ़-ए-दहन

फ़क़त रंजिश इस बात पर हो गई

खुली ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से पीरी में आँख

शब-ए-नौजवानी सहर हो गई

लिफ़ाफ़े पर अपना न लिक्खा था नाम

ख़ता इतनी ऐ नामा-बर हो गई

किया हँस के सुन कर सवाल-ए-विसाल

तुम्हें जुरअत अब इस क़दर हो गई

क़दम रखते ही खड़खड़ा मार रीछ

अदू उन की ज़ंजीर-ए-दर हो गई

अजल से कोई कह दे फिर जाए आप

मसीहा को मेरे ख़बर हो गई

न झूटों भी उतना किसी ने कहा

शब-ए-ग़म तिरी बे-सहर हो गई

बुरे या भले हाल गुज़री 'क़लक़'

ग़रज़ हर तरह से बसर हो गई

(754) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ye Barik Unki Kamar Ho Gai In Hindi By Famous Poet Arshad Ali Khan Qalaq. Ye Barik Unki Kamar Ho Gai is written by Arshad Ali Khan Qalaq. Complete Poem Ye Barik Unki Kamar Ho Gai in Hindi by Arshad Ali Khan Qalaq. Download free Ye Barik Unki Kamar Ho Gai Poem for Youth in PDF. Ye Barik Unki Kamar Ho Gai is a Poem on Inspiration for young students. Share Ye Barik Unki Kamar Ho Gai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.