जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा
जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा
तू अपने दाँतों से काट कर दे हमारे मुँह में कबाब आधा
वो पुर-गुनह हूँ कि रह गए सब उसी में दिन कट गया वो सारा
हनूज़ महशर के महकमे में हुआ था मेरा हिसाब आधा
कहाँ गई अब वो लन-तरानी न ताब जल्वे की लाए आशिक़
हुनूज़ खोला था बहर-ए-दीदार उस ने बंद-ए-नक़ाब आधा
जज़ा-ए-कामिल जो चाहता है तो ज़ब्ह कर डाल जल्द क़ातिल
न छोड़ना मुझ को नीम-बिस्मिल कि पाएगा तू सवाब आधा
दिमाग़ देखो मिरे सनम का गिला जो करता हूँ मैं सितम का
तो देते हैं सारी बात का वो मुझे ब-दिक़्क़त जवाब आधा
सफ़ेद-ओ-सुर्ख़ है ऐसी रंगत कि जब बना होगा उस का पुतला
मिलाया होवेगा उस में साने' ने मैदा आधा शहाब आधा
दुपट्टा आब-ए-रवाँ का सर का जो उस की महरम से समझे ये हम
कि बहर-ए-हुस्न-ए-सनम का हम को दिया दिखाई हबाब आधा
इशारा है साफ़ ऐ 'क़लक़' ये कि आओ सहबा-कशी हो बाहम
जो उस ने भेजी है अपनी झूटी शराब आधी कबाब आधा
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