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हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया - अरशद अली ख़ान क़लक़ कविता - Darsaal

हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया

हम ने एहसान असीरी का न बर्बाद किया

मरते दम मुँह तरफ़-ए-ख़ाना-ए-सय्याद किया

अब की सय्याद ने तुर्फ़ा सितम ईजाद किया

बे-पर-ओ-बाल समझ कर हमें आज़ाद किया

क्या तिरी याद करेंगे फ़लक-ए-ना-इंसाफ़

दिल-ए-नाशाद हमारा न कभी शाद किया

दिल पे सदमे लिए जौर-ओ-सितम ख़ूबाँ के

ज़ब्त देखो न कभी वा लब-ए-फ़रियाद किया

आसमाँ की न शिकायत न हसीनों का गिला

दिल-ए-ना-फ़हम ने मेरे मुझे बर्बाद किया

इतना शिकवा है ख़याल-ए-रुख़-ए-जानाँ से हमें

दिल-ए-वीराँ न हमारा कभी आबाद किया

शेफ़्ता कर के मुझे इक बुने हरजाई पर

ख़ूब रुस्वा-ए-जहाँ ऐ दिल-ए-नाशाद किया

हाथ आया कोई मज़मून नया तो समझा

मुझ को फ़रज़ंद-ए-ख़ुदा ने मिरे इमदाद किया

इश्क़-ए-ख़ूबाँ में हुआ रंज तो राहत समझा

शुक्र मैं ने एवज़-ए-शिकवा-ए-बेदाद किया

कुफ्र-ओ-इस्लाम के झगड़ों से छुड़ाया सद शुक्र

क़ैद-ए-मज़हब से जुनूँ ने मुझे आज़ाद किया

महफ़िल-ए-ग़ैर में बुलवा के जलाया हम को

तुम ने ख़ल्वत में किसी दिन न हमें याद किया

जिस में मज़मून रक़म था तिरी ख़ुश-चश्मी का

तो उसी शे'र पे उस्ताद ने भी साद किया

कोह-ए-ग़म हम ने भी ओ ग़ैरत-ए-शीरीं काटा

जोश-ए-उल्फ़त में तिरे पेशा-ए-फ़र्हाद किया

एक दिन भी न हमारा कोई कहना माना

हम बजा लाए जो कुछ आप ने इरशाद किया

तेरे दीवानों का किस दश्त में मस्कन न हुआ

कौन सा है वो ख़राबा जो न आबाद किया

हसरत-ए-क़त्ल ही ने जान ली अपनी सद शुक्र

मौत ने हम को न शर्मिंदा-ए-जल्लाद किया

देखो इस इश्क़-ए-फुसूँ-साज़ के नैरंग आख़िर

जान ली क़ैस की टुकड़े सर-ए-फ़रहाद किया

लाख चाहा मगर इक शोख़ हमारा न हुआ

क्या जवानी को 'क़लक़' मुफ़्त में बर्बाद किया

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