बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई

बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई

साबित किया जो उस का दहन बात रह गई

क्या जल्द वस्ल-ए-यार की कम रात रह गई

जो बात चाहते थे वही रात रह गई

बद-नामियों के डर से वो मिलते हैं गाह गाह

चोरी-छुपे की उन से मुलाक़ात रह गई

गिर्यां वो हूँ जो अब्र-ए-मिज़ा की झड़ी लगी

मुँह मेरा देख देख के बरसात रह गई

हर-वक़्त बात बात पे देते हो झिड़कियाँ

क्यूँ साहब अब हमारी ये औक़ात रह गई

मिलता नहीं किसी से बशर कोई बे-ग़रज़

मतलब की अब जहाँ में मुलाक़ात रह गई

गर्दिश में साथ उन आँखों का कोई न दे सका

दिन रह गया कभी तो कभी रात रह गई

वाइज़ को अपने रंग पे ले आया खींच कर

आज आबरू-ए-रिंद-ए-ख़राबात रह गई

बातें सुनाईं ग़ैरों के आगे जो यार ने

फ़रमाइए फिर आप की क्या बात रह गई

फ़ुर्क़त में सब्र-ओ-होश तो सब कूच कर गए

पर एक जान मोरिद-ए-आफ़ात रह गई

तौहीन-ए-मय न करती थी रिंदों में वाइज़ा

इज़्ज़त तुम्हारी क़िबला-ए-हाजात रह गई

दिल में तो ख़ाक उड़ती है ज़ाहिर में हैं फ़िदा

अब तो मुनाफ़िक़ाना मुलाक़ात रह गई

देने के बदले देते हैं साइल को झिड़कियाँ

ये रह गए अमीर ये ख़ैरात रह गई

दिल पाएमाल करने थे रफ़्तार-ए-नाज़ को

ये चाल तुझ से ओ बुत-ए-बद-ज़ात रह गई

आमादा जान लेने पे मेरी थी वो मगर

क्या जानें क्यूँ उभर के तिरी गात रह गई

दुनिया से बढ़ के कौन है हरजाई दूसरा

दो दिन न किस के पास ये बद-ज़ात रह गई

जो कुछ था पास कर चुके सब नज़्र मय-फ़रोश

अब मय-कशों की क़र्ज़ पे औक़ात रह गई

करना था नक़्द-ए-होश उसे नज़्र ऐ 'क़लक़'

पीर-ए-मुग़ाँ की हम से मुदारात रह गई

(918) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Baqi Na Hujjat Ek Dam-e-isbaat Rah Gai In Hindi By Famous Poet Arshad Ali Khan Qalaq. Baqi Na Hujjat Ek Dam-e-isbaat Rah Gai is written by Arshad Ali Khan Qalaq. Complete Poem Baqi Na Hujjat Ek Dam-e-isbaat Rah Gai in Hindi by Arshad Ali Khan Qalaq. Download free Baqi Na Hujjat Ek Dam-e-isbaat Rah Gai Poem for Youth in PDF. Baqi Na Hujjat Ek Dam-e-isbaat Rah Gai is a Poem on Inspiration for young students. Share Baqi Na Hujjat Ek Dam-e-isbaat Rah Gai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.