Coupletss of Arshad Ali Khan Qalaq (page 2)
नाम | अरशद अली ख़ान क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Arshad Ali Khan Qalaq |
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
क्या कोई दिल लगा के कहे शे'र ऐ 'क़लक़'
कुफ्र-ओ-इस्लाम के झगड़ों से छुड़ाया सद-शुक्र
कुछ ख़बर देता नहीं उस की दिल-ए-आगह मुझे
कोताह उम्र हो गई और ये न कम हुई
ख़ुश-क़दों से कभी आलम न रहेगा ख़ाली
खुलने से एक जिस्म के सौ ऐब ढक गए
ख़ुदा-हाफ़िज़ है अब ऐ ज़ाहिदो इस्लाम-ए-आशिक़ का
ख़त में लिक्खी है हक़ीक़त दश्त-गर्दी की अगर
ख़रीदारी-ए-जिंस-ए-हुस्न पर रग़बत दिलाता है
ख़फ़ा हो गालियाँ दो चाहे आने दो न आने दो
करो तुम मुझ से बातें और मैं बातें करूँ तुम से
करेंगे हम से वो क्यूँकर निबाह देखते हैं
काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में
जमे क्या पाँव मेरे ख़ाना-ए-दिल में क़नाअ'त का
जब हुआ गर्म-ए-कलाम-ए-मुख़्तसर महका दिया
हम उन से और वो हम से दम-ए-सुल्ह थे ख़जिल
हम तो न घर में आप के दम-भर ठहरने आएँ
हुआ मैं रिंद-मशरब ख़ाक मर कर इस तमन्ना में
हिम्मत का ज़ाहिदों की सरासर क़ुसूर था
हज़रत-ए-इश्क़ ने दोनों को किया ख़ाना-ख़राब
गुल-गूँ तिरी गली रहे आशिक़ के ख़ून से
गुलगश्त-ए-बाग़ को जो गया वो गुल-ए-फ़रंग
घाट पर तलवार के नहलाईयो मय्यत मिरी
गर्दिश में साथ उन आँखों का कोई न दे सका
दिल ख़स्ता हो तो लुत्फ़ उठे कुछ अपनी ग़ज़ल का
दस्त-ए-जुनूँ ने फाड़ के फेंका इधर-उधर
छेड़ा अगर मिरे दिल-ए-नालाँ को आप ने
चला है छोड़ के तन्हा किधर तसव्वुर-ए-यार
बुत-परस्ती में भी भूली न मुझे याद-ए-ख़ुदा