Coupletss of Arshad Ali Khan Qalaq
नाम | अरशद अली ख़ान क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Arshad Ali Khan Qalaq |
ज़मीन पाँव के नीचे से सरकी जाती है
यूँ रूह थी अदम में मिरी बहर-ए-तन उदास
यूँ राही-ए-अ'दम हुई बा-वस्फ़-ए-उज़्र-ए-लंग
यार की फ़र्त-ए-नज़ाकत का हूँ मैं शुक्र-गुज़ार
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
याद दिलवाइए उन को जो कभी वादा-ए-वस्ल
वो रिंद हूँ कि मुझे हथकड़ी से बैअत है
वो एक रात तो मुझ से अलग न सोएगा
उन वाइ'ज़ों की ज़िद से हम अब की बहार में
उम्र तो अपनी हुई सब बुत-परस्ती में बसर
तिलाई रंग जानाँ का अगर मज़मून लिखूँ ख़त में
तिरे होंठों से शर्मा कर पसीने में हुआ ये तर
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
सिंदूर उस की माँग में देता है यूँ बहार
सैद ख़ाइफ़ वो हों इस सैद-गह-ए-आ'लम में
रुख़ तह-ए-ज़ुल्फ़ है और ज़ुल्फ़ परेशाँ सर पर
रस्ते में उन को छेड़ के खाते हैं गालियाँ
राह-ए-हक़ में खेल जाँ-बाज़ी है ओ ज़ाहिर-परस्त
'क़लक़' ग़ज़लें पढ़ेंगे जा-ए-कुरआँ सब पस-ए-मुर्दन
पूछा सबा से उस ने पता कू-ए-यार का
फिर मुझ से इस तरह की न कीजेगा दिल-लगी
फिर गया आँखों में उस कान के मोती का ख़याल
फँस गया है दाम-ए-काकुल में बुतान-ए-हिन्द के
नया मज़मून लाना काटना कोह-ओ-जबल का है
मुझ से उन आँखों को वहशत है मगर मुझ को है इश्क़
मुबारक दैर-ओ-का'बा हों 'क़लक़' शैख़-ओ-बरहमन को
मिसाल-ए-आइना हम जब से हैरती हैं तिरे
मंज़िल है अपनी अपनी 'क़लक़' अपनी अपनी गोर
मैं वो मय-कश हूँ मिली है मुझ को घुट्टी में शराब
मय जो दी ग़ैर को साक़ी ने कराहत देखो