Ghazals of Arshad Abdul Hamid
नाम | अरशद अब्दुल हमीद |
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अंग्रेज़ी नाम | Arshad Abdul Hamid |
जन्म स्थान | Tonk |
सुख़न के चाक में पिन्हाँ तुम्हारी चाहत है
शर्त-ए-दीवार-ओ-दर-ओ-बाम उठा दी है तो क्या
रुकते हुए क़दमों का चलन मेरे लिए है
मुझ को तक़दीर ने यूँ बे-सर-ओ-आसार किया
मुझ सा बेताब यहाँ कोई नहीं मेरे सिवा
मिले जो उस से तो यादों के पर निकल आए
मिरे ख़ेमे ख़स्ता-हाल में हैं मिरे रस्ते धुँद के जाल में हैं
मेरे अशआर तमव्वुज पे जो आए हुए हैं
मेहर ओ महताब को मेरे ही निशाँ जानती है
लकीर-ए-संग को अन्क़ा-मिसाल हम ने किया
कोई भी शय हो मियाँ जान से प्यारी किसे है
ख़ामोशी तक तो एक सदा ले गई मुझे
जुनूँ के तौर हम इदराक ही से बाँधते हैं
जिंस-ए-मख़लूत हैं और अपने ही आज़ार में हैं
इश्क़ मरहून-ए-हिकायात-ओ-गुमाँ भी होगा
हवा-ए-हिर्स-ओ-हवस से मफ़र भी करना है
है टोंक अर्ज़-ए-पाक वहीं से उठेंगे हम
ग़ज़ल में जान पड़ी गुफ़्तुगू में फूल खिले
घटाएँ घिरती हैं बिजली कड़क के गिरती है
ग़लत नहीं है दिल-ए-सुल्ह-ख़ू जो बोलता है
फ़सील-ए-सब्र में रौज़न बनाना चाहती है
चिराग़-ए-दर्द कि शम-ए-तरब पुकारती है