ज़िंदगी होने का दुख सहने में है
ज़िंदगी होने का दुख सहने में है
ज़ोर दरिया का फ़क़त बहने में है
रुक गए तो देखने आएँगे लोग
आफ़ियत अब घूमते रहने में है
कह रहे हैं लोग उस से बात कर
जैसे वो ज़ालिम मिरे कहने में है
छू लिया था दर्द की ज़ंजीर को
वो भी अब शामिल मिरे कहने में है
'अर्श' वो अपनी ख़ुदाई में कहाँ
बात जो उस को ख़ुदा कहने में है
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