इस इंतिहा-ए-तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
हम ने लिया है नाम तुम्हारा कभी कभी
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जितनी वो मिरे हाल पे करते हैं जफ़ाएँ
मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
सब देखने वाले उन्हें ग़श खाए हुए हैं
पहला सा वो जुनून-ए-मोहब्बत नहीं रहा
दर्द का हाल आह से पूछो
है देखने वालों को सँभलने का इशारा
जश्न-ए-आज़ादी
तरब के मख़मसे ग़म के झमेले
ख़ाना-ए-दिल में दाग़ जल न सका
ज़ख़्म-ए-दिल भी दिखा के देख लिया
फ़रिश्ते को मिरे नाले यूँही बदनाम करते हैं
ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है